नाम में 'पंडित' था तो मार डाला, वाकई में होते तो क्या करते?

श्रीनगर की जामिया मस्जिद के बाहर राज्य पुलिस के डीएसपी मोहम्मद अयूब पंडित को उन्मादी भीड़ ने सिर्फ इसलिए पीट-पीटकर मार डाला क्योंकि उनके नाम में ‘पंडित’ शब्द शामिल था। वह अपना नाम एम.ए. पंडित लिखते थे। मस्जिद के बाहर सुरक्षा में तैनात पंडित किसी से फोन पर बात कर रहे थे, इस पर उन्मादियों को संदेह हुआ कि वह रिकॉर्डिंग कर रहे हैं। उन पर हमला करने वाली भीड़ ने जब उनके नेमप्लेट पर पंडित लिखा देखा तो वह जानलेवा हो गई और अयूब को वहीं पीटकर मार डाला। ‘पंडित’ शब्द पढ़कर किसी का बेरहमी से कत्ल कर देना बताता है कि कश्मीर घाटी का अलगाववादी तबका किस कदर कट्टर इस्लामिक है। समझा जा सकता है कि जिन लोगों ने सिर्फ एक पंडित शब्द पर अपनी ही सुरक्षा में तैनात अधिकारी को बेदम कर दिया हो, उन्होंने कश्मीरी पंडितों का क्या हाल किया होगा।
                                      बीते साल हिज्बुल के खूंखार आतंकी बुरहान वानी की मौत के बाद खुद उसकी मां ने स्पष्ट तौर पर कहा था कि उसके बेटे ने आजादी के लिए नहीं, बल्कि इस्लामी निजाम की स्थापना के लिए शहादत दी है। इसके अलावा गाहे-बगाहे इस्लामिक स्टेट के झंडे फहराए जाने और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगना यह साबित करता है कि कश्मीर में अलगाववादी कौन सी आजादी चाहते हैं।यही वजह है कि आज भी देश भर में भटक रहे कश्मीरी पंडित अपने ऊपर हुए अत्याचारों को याद कर सिहर उठते हैं। यह घटना बताती है कि अलगाववादी और उनका अनुसरण करने वाले लोग कथित आजादी के नाम पर इस्लामी निजाम की स्थापना के लिए लड़ रहे हैं, जिसमें किसी कश्मीरी पंडित या सिख के लिए जगह नहीं होगी। यदि उनके नाम का कोई मिल भी जाए तो उसका कत्ल कर दिया जाएगा।
post source: Surya Prakash NBT

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