नारीवाद के नाम पर आपको अश्लीलता चाहिए क्या?

नारीवाद, आखिर इस ‘विचारधारा’ के मायने क्या हैं ? 
                            क्या नारीवाद का अर्थ यह है कि आप आधुनिकता के नाम पर नग्नता का समर्थन करें या फिर यह कि आप नारी के महत्व को समझें और अपने व्यवहार में नारी के समर्पण के प्रति सम्मान रखें। 
यदि नारीवाद का अर्थ पिछले वाक्य में लिखा गया पहला भाग है तो विश्वास मानिए वैसा नारीवाद भारत के लिए और भारतीय नारी के अस्तित्व के लिए एक जहर है। 
और यदि नारीवाद का अर्थ उस वाक्य का दूसरा हिस्सा है तो वह भारतीयता के मूल सिद्धान्त का प्रतिरूप ही तो है। 
मैं प्रयास करता हूं कि मैं जितना समर्पण भाव अपनी  मां और बहन के प्रति रखता हूं, उतना ही अन्य महिलाओं के प्रति रख सकूं। क्या ‘नारीवाद’ का पैमाना यह नहीं हो सकता ? क्या ‘नारीवाद’ का पैमाना सिर्फ यह हो सकता है कि आप किसी लड़की को नग्नता के चरम पर पहुंचने में अपना सहयोग करें।
नारीवाद के वर्तमान संरक्षकों को, विज्ञापनों में जिस तरह से नारी की देह को बेचा जा रहा है, वह नहीं दिखता। क्यों? क्योंकि उनको तो वही देखना है न! उनको जो देखना है उस पर नारीवाद का चोंगा डालकर देखने के लिए जो भी कर पाएंगे करेंगे ही।
लेकिन यदि उस रूप में उनकी पत्नी, बेटी अथवा बहन आना चाहेगी तो फिर बैठकर रोएंगे। उनके विशिष्ट ‘नारीवाद’ के पैमाने तब बदल जाएंगे।
आज के टीवी सीरियल्स में जिस तरह से ‘इसकी पत्नी उसके साथ और उसकी पत्नी इसके साथ’ वाली परंपरा को आज के तथाकथित नारीवादी चटखारे लेकर देखते हैं, नारी के उसी रूप को यदि उनकी पत्नी आत्मसात कर ले तो? इस प्रश्न का जवाब संभवतः वे नहीं दे सकते। और देंगे भी कैसे, जब अपने घर का विषय आता है तो फर्जी सिद्धान्त की बड़ी-बड़ी अट्टालिकाएं ध्वस्त हो जाती हैं।
कुछ दिन पहले संघ के एक समवैचारिक संगठक राष्ट्रीय सेविका समिति के एक कार्यक्रम में वक्ता ने कहा, ‘महिलाओं को अपने अधिकारों अधिक दायित्व के विषय में सोचना चाहिए। उन्हें सीता और द्रौपदी को आदर्श मानना चाहिए।’
स्वाभाविक है कि इस बयान को सुनने के बाद मन में प्रश्न उठेगा कि भाई कोई सीता और द्रौपदी जैसी महिलाओं को आदर्श क्यों माने? मेरा मानना है कि हर एक नारी जिसने कुछ अच्छा किया है, उससे सकारात्मक कर्तव्यों तथा अधिकारों को सीखना चाहिए। इस बात में कोई संदेह नहीं कि मध्यकाल के बाद भारतीय नारी की स्थिति बहुत खराब हो गई थी लेकिन उन कठिन परिस्थितियों में भी जिन नारियों ने संघर्ष करते हुए एक उदाहरण प्रस्तुत किया क्या उन्हें आदर्श नहीं माना जा सकता?
सीता की बात आई तो क्या हम सिर्फ इसलिए उन्हें नकार दें क्योंकि उनकी चर्चा आरएसएस के विचार परिवार से जुड़े एक संगठन की कार्यकर्ता ने की है? क्या सीता को सिर्फ इसलिए नकार दें कि वह एक विशेष पूजा पद्धति में विश्वास करने वालों द्वारा ‘मां’ अथवा ‘देवी’ मानी जाती हैं। जिन्हें एक विशेष वर्ग ‘भगवान’ कहता है, मैं उन्हें एक चरित्र मानता हूं और मैंने उनको जितना पढ़ा है उसके आधार पर वे मुझे मुझसे कई गुना बेहतर लगे।
श्रीराम वनवास जा रहे थे तब वह चाहते थे सीता जी मां कौशल्या के पास ही रुक जाएं पर सीता की इच्छा और श्रीराम तथा कौशल्या की इच्छा अलग-अलग थी। आज के समय में सास, बहू और बेटा, इन तीनों के बीच मतभेद होते हैं तो परिवार में तनाव बढ़ जाता है, लेकिन रामायण में श्रीराम के धैर्य, सीता जी और कौशल्या जी की समझ से सभी मतभेद दूर हो गए। क्या आज की नारी अपने परिवार में समन्वय स्थापित करने के लिए सीता जी से नहीं सीख सकती?
हर वह काम जो एक पुरुष कर सकता है, उसे स्त्री भी कर सकती है। यह स्त्रियों का अधिकार नहीं उनकी क्षमता है लेकिन यदि स्त्रियों का वात्सल्य खो गया तो विश्वास मानिए स्त्री, स्त्री न रहकर पुरुष बन जाएगी।
अपने अधिकारों के साथ भारतीय नारित्व के मूल स्तंभ को भी यदि आपने बचाकर रख लिया तो यह सोने पर सुहागा कहा जाएगा। भारतीय संस्कृति में नारी की विशिष्टता का मूल आधार महिलाओं का सतीत्व और उनकी मर्यादा रही है। 
यहां संभव है कि आप मेरे ‘सतीत्व’ शब्द को सती प्रथा से जोड़ दें लेकिन सती शब्द का अर्थ भारतीय सनातन परंपरा में अपने कर्म तथा धर्म के प्रति समर्पण होता है। आज घर में रहकर खाना बनाना या बच्चे को संभालना ही कर्म अथवा धर्म नहीं कहा जा सकता। आज आवश्यकता है कि आप हमारे साथ चलें, इसलिए आज धर्म वही है, आखिर इस भारतीय परंपरा में दायित्व ही तो धर्म है। आज जो आप हमारे साथ मिलकर पूरी शिद्दत के साथ कर रही हैं वही आपका धर्म है और मुझे वास्तव में आपके संघर्ष पर गर्व होता है। आपके समर्पण को नमन है लेकिन आप अगर यह भी चाहती हैं कि मेरे साथ-साथ विश्व भी आपके समर्पण को नमन करे तो अनिवार्य रूप से मर्यादा और शक्ति के मूल स्वरूप के बीच का सामन्जस्य बरकरार रखना होगा।
नारी को भले ही देवी न बनाएं लेकिन कम से कम उन्हें पुरुष भी न बनाएं क्योंकि यदि वे पुरुष बन गईं तो सृष्टि समाप्त हो जाएगी।

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